Author Blog: सरकारी नौकरी आज के जमाने की उस लड़की की तरह हो गई हैं, जो दिखने में काफी सुंदर हैं और हर कोई उसे अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहता है। लेकिन इस पागलपन के पीछे समाज कितना खोखला होता जा रहा है, शायद इसका अंदेशा ना जिम्मेदार लोगों को हो रहा हैं और ना ही सत्ताधीन नायकों पर। मुझे पूरा विश्वास हैं कि मेरी इस बात से लगभग सभी लोग सहमत होंगे। जो नहीं सहमति दे रहे हैं, उनकी भी कुछ मजबूरियां होंगी। जो इसे समझना नहीं चाहते हैं।
समाज में एक तरह का ब्लाइंड युद्द शुरु हो चुका हैं, जो आने वाले समय में किसी एटम बम की तरह जरुर फूटेगा। …और जब यह बम फूटेगा तो बड़ी तबाही लेकर आएगा। हर तबाही की शुरुआत छोटी-छोटी समस्याओं से होती हैं। जिस तबाही की बात मैं आपको बताना चाहता हूं वो आपको धीरे-धीरे मेरे इस ब्लॉग में समझ में आ जायेगी। मैं अपने इस ब्लॉग में सरकारी नौकरी खत्म करने की बात नहीं कहूंगा और ना ही मैं कोई आरक्षण खत्म करने की बात करूँगा। लेकिन मैं एक ऐसी बात जरुर करूंगा जो संभवतया काफी लोगों को पसंद ना आए।
यह ब्लॉग सिर्फ सरकारी नौकरी की चयन प्रक्रिया को बदलने के मेरे एक विचार पर आधारित हैं। मैं कमेंट सेक्शन में जरुर चाहूंगा कि सभी मेरे इस विचार पर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया जरुर देवे। चलिए इस ब्लॉग में आगे बढ़ता हूं…
मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि सरकारी नौकरी के चयन का जो तरीका सदियों से चला आ रहा हैं। उसका काफी नुकसान समाज को झेलना पड़ रहा हैं। लिखित परीक्षा आधारित पैटर्न को बदलने की आवश्यकता हैं। दरअसल, हर कोई सरकारी नौकरी की तरफ दौड़ लगा रहा हैं। कई किस्मत वालों को नौकरी मिल रही हैं और उससे भी कई अधिक लोगों की पढ़ाई व्यर्थ हो रही हैं। पढ़ाई को व्यर्थ शब्द मैं नहीं देना चाहता लेकिन जो सरकारी नौकरी लेने में विफल हो रहे है, उनमें से ही अधिकांश लोग ऐसा कह रहे हैं।
सरकारी नौकरी नहीं लगने पर व्यक्ति खुद को हीन भावना से ग्रसित कर लेता हैं। उसे लगता है कि अब वह जीवन में शायद ही कुछ कर पायेगा। इसकी वजह हैं, जैसे कि शादी-व्याह में अड़चने और निजी व्यवसाय या प्राइवेट सेक्टर में स्थिरता का अभाव आदि।
बदलना होगा सरकारी नौकरी में चयन का तरीका
विभाग चाहे जो भी हो लेकिन सरकारी नौकरी में उम्मीदवार के चयन का तरीका बदलना होगा। मौजूदा समय में सरकारी नौकरी में चयन लिखित परीक्षा और साक्षात्कार आधारित होता हैं। लेकिन यदि इस पैटर्न को ‘गुणवत्ता के आधार’ से बदल दिया जाए तो कई फायदे हो सकते है। जमाना बदल रहा है और तकनीक का भी समय है। इसलिए कहता हूं कि जमाने के साथ बदलती तकनीक और परिवर्तित सोच के साथ सरकारी विभागों में चयन का पैटर्न भी बदलना चाहिए।
एक उदारहण के तौर पर इस बात को समझिये…
मौजूदा समय में क्या हो रहा है:
एक स्कूल में 10वीं क्लास की किसी एक विषय को पढ़ाने के लिए प्राइवेट अध्यापक 5000 रुपये वेतन ले रहा है। वही उसी क्लास की समान विषय को पढ़ाने के लिए सरकारी अध्यापक 50,000 रुपये वेतन के रूप में प्राप्त करता है। लेकिन परिणाम प्राइवेट अध्यापक द्वारा पढाये गए बच्चों को बेहतर होता हैं सरकारी अध्यापक के पढाये बच्चों के परिणाम की तुलना में। देशभर में अधिकतर यही अंतर आपको हर राज्य में देखने को मिलेगा।
इस अंतर को पाटने के लिए जिम्मेदार विभाग और प्रशासन के लोग सिर्फ आंख और कान बंद कर बैठे है। या तो वह समाज के चल रहे इस अंतर की गहराई को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर उन्हें कुछ पाथ सूझ नहीं रहा। इसलिए संभवतया मेरा यह विचार (जो मैं आगे बताने जा रहा हूँ) उनकी कुछ मदद कर सकें।
होना कुछ ऐसा चाहिए:
संबंधित विभाग द्वारा एक वेबसाइट का निर्माण किया जाना चाहिए। जिसमें प्रतिवर्ष प्रदेश के कोने-कोने में संचालित सभी विद्यालयों में पढ़ाने वाले अध्यापकों का परिणाम (जो उनके द्वारा पढ़ाये गए बच्चों के परिणाम के आधार पर तैयार होगा) सार्वजनिक रूप से अपलोड किया जा सके। ऐसा करने से फायदा यह होगा कि हमें वो अध्यापक फ़िल्टर करने में आसानी होगी, जो बेहतर प्रशिक्षण दे सकते है।
प्रतिवर्ष के आधार पर सर्वश्रेष्ठ अध्यापकों को आगामी वर्ष के लिए उचित मापदंड (जो प्राइवेट स्कूल से कुछ प्रतिशत अधिक हो) पर सरकारी विद्यालय में पदोन्नति दी जानी चाहिए। ऐसा करने से चुने गए सर्वश्रेष्ठ अध्यापक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के साथ जी-तोड़ मेहनत करेंगे और सरकारी विद्यालय के परिणाम को बेहतर बनाने में बड़ा योगदान देंगे।
इसके बाद यदि एक वर्ष के लिए चुने गए सरकारी अध्यापक अपने परिणाम को निरंतर बेहतर रख पाने में असफल रहते हैं तो उन्हें फिर से प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने के लिए स्वतंत्र किया जाना चाहिए। यह रूटीन निरंतर चलता रहना चाहिए। इससे बड़ा फायदा होगा कि ‘सरकारी नौकरी की भेड़ चाल’ पर लगाम लगेगी। साथ ही सरकारी कर्मचारियों पर उड़ाए जा रहे वेतन में भी कमी आएगी, जिससे अन्य आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
स्कूल शिक्षण प्रणाली पर बेस्ड यह सिर्फ एक उदारहण हैं। लेकिन यह फॉर्मूला हर सरकारी विभाग और संबंधित प्राइवेट सेक्टर पर लागू किया जाना चाहिए।