Author Blog: ‘सोशल मीडिया की बीमारी’- आकाश अग्रवाल की कलम से… ✍
हमारा अपने स्वभाव से विपरीत दुनिया में जाना बेहद खतरनाक साबित हो सकता हैं। यह इसलिए कहा जा सकता हैं क्योंकी आप और हम अपने रिश्तों को तकनीक के बढते उपयोग से कोसों दूर छोड़ते जा रहे हैं अपने रिश्तों को तकनीक के बढते उपयोग से कोसों दूर छोड़ते जा रहे हैं। विज्ञान ने हमे जीवन के सबसे विकट मोड़ पर ला खड़ा किया हैं जिसके पाश से निकल पाना असंभव सा प्रतीत होता हैं।
सोशल मीडिया से दूर होना जैसे शरीर को क्षत-विक्षत करना
यहां हम बात कर रहे मीडिया के उस हिस्से की जो और अन्य (प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया ) से अलग हैं। इनके माध्यम से सरलता से अपनी बात सब तक पहुँचाना कितना आसान हो गया हैं । एक नॉन ट्रेडिशनल मीडिया जिस पर इंटरनेट के माध्यम से वैश्विक पहुँच बनाना छोटी बात हो चली हैं। फेसबुक , ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप्प जैसे सोशल प्लेटफार्म हमारे अहम् अंग हो चुके हैं जिनसे दूर होना अपने शरीर को क्षत-विक्षत करने जैसा हैं।
बच्चों को अब याद नहीं आते नाना-नानी और मामा-मामी
वर्तमान समय वो समय हैं, जिसमें सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से आज की जनरेशन को अपने प्रकोप में ले लिया हैं। शांत स्वभाव से बैठकर सोचिये कि, आपके बच्चे या खुद आप अपने ननिहाल जाते हैं ? एक समय था जब आप और हम ग्रीष्म ऋतू में तीन से चार महीने तक भी नानी मामा के यहां से आने के बाद भी संतुष्ट नहीं हो पाते थे। और एक वर्तमान समय हैं जब बच्चे नाना-नानी के जाते नहीं और जो जाते हैं वो कुछ यादें लेके आते नहीं।
मोबाइल रखने के लिए सरकार ने नहीं बनाई उम्र सीमा
जाहिर सी बात हैं आज आपको या हमें मोबाइल से फुरसत मिले तो हम रिश्तों को संवारे। शादी-समारोह में बच्चे आपस में मिलते तो हैं लेकिन पास बैठकर भी वो दूर ही रहते हैं, क्योंकि मोबाइल रखने के लिये किसी सरकार ने उम्र का कोई कानून पारित नहीं किया हैं। सोशल मीडिया तो वो प्लेटफॉर्म हैं जिस पर हम अपने किसी के गुम हो जाने पर फोटो और अन्य जानकारी अपलोड कर शेयर कर देते हैं, जो पुलिस से ज्यादा काम करता हैं।
हर कोई सोशल मीडिया की गर्मी के पसीने में भीगा हुआ
उम्र और समझ का कोई बंधन नहीं पोर्न साइट्स हो या अन्य बेहूदा सामग्री , कोई भी आसानी से पहुँच सकता हैं । विधार्थी किताबों से ज्यादा फेसबुक पर समय बिताने लगा हैं । शिक्षक की जरुरत को गूगल और यूट्यूब पूरी कर ही रहे हैं । 280 शब्दों तक अपनी बात कहने का हुनर सिखाया वो हैं ट्विटर । युवा ही नहीं हमारे जन प्रतिनिधि जिन्हें हमने सत्ता पर बैठाया हैं कही न कहीं सब सोशल मीडिया की गर्मी के पसीने में भीगे हुए हैं।
सोशल मीडिया बन गया हर विरोध का मुख्य हथियार
आज के समय का सबसे लोकप्रिय मीडिया जहाँ व्यक्ति अपने को या किसी उत्पाद को अधिक लोकप्रिय बना सकता हैं। आपको याद होगा इंडिया अगेंस्ट करप्शन जिसने सोशल मीडिया के उपयोग से सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया । निर्भया आंदोलन को याद कीजिये जिसने सरकार को एक मजबूत कानून बनाने पर मजबूर कर दिया।और ध्यान में लाईये 2014 के चुनावों को जिसने युवा जागरूकता को नई दिशा दी जिससे देश को एक पूर्ण बहुमत की सरकार मिली । यह सब संभव हो सका तो सोशल मीडिया के लगातार बढते उपयोग से।
अपनाये लेकिन सोशल मीडिया को आदत ना बनाये
अंततः उचित यही होगा की तकनीक के साथ बढिए जरुर लेकिन अपने रिश्तों को संभालियेगा। गूगल से सीखिये लेकिन गुरु की महत्वत्ता को खत्म मत होने दीजिये । कही ऐसा न हो बहिन की राखी व्हाट्सएप्प के जरिये भाई के कलाइयों में बंध जाये । और हम नानी के दुलार, मामा के प्यार से खाली रह जाये। सोशल मीडिया को अपनाइये लेकिन अपनी आदत न बनाएं।