Shiv Katha Hindi: हिंदू धर्म में महादेव यानि भोलेनाथ को देवों का देव कहा जाता हैं। उन्हीं महादेव के सिर पर चंद्र देव विराजित रहते हैं, यह थोड़े आश्चर्य की बात हैं। शिव पुराण में शिव के सिर पर विराजित चंद्र देव की कथा बताई गई, जो बेहद ख़ास हैं। शिव पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकला तो शिव ने उसे ग्रहण किया था, जो उनके कंठ में जमा हो गया था। इससे उनका कंठ नीला हो गया और प्रभु विष्णु ने उन्हें नीलकंठ नाम दिया।
हलाहल की गर्मी को चन्द्रमा ने रोका
जगत की रक्षा के लिए भगवान भोलेनाथ ने उस हलाहल विष को पी तो लिया, लेकिन विष की गर्मी से वह आहत होने लगे थे। भोलेनाथ की यह स्तिथि देखकर अन्य देवतागण चिंतित हो उठे। इस स्तिथि में सभी देवताओं ने चंद्र देवता से भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान होने का आग्रह किया, ताकि उनकी शीतलता के प्रभाव से विष की गर्मी को शांत रखा जा सके। दरअसल, चंद्रमा बेहद शीतल होता है और जगत को शीतलता प्रदान करता है। यही वजह है कि, भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है। यह तो थी, शिव पुराण में वर्णित एक कहानी। ऐसी ही दूसरी पौराणिक कथा आगे पढ़े-
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दक्ष के श्राप से चन्द्रमा ने खोई शीतलता
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दक्ष के 27 पुत्रियां थीं और उन्होंने सभी का विवाह चंद्रमा से किया था। साथ ही शर्त रखी कि, चंद्रमा अपनी सभी 27 पत्नियों के साथ एक जैसा व्यवहार करेंगे। लेकिन, चंद्रमा पत्नी रोहिणी के सबसे करीब रहे और अन्य पत्नियों के साथ उसके बराबर व्यवहार रखने में सफल नहीं रहे। इस बात से परेशान होकर अन्य चंद्र पत्नियों ने अपने पिता और राजा दक्ष से शिकायत की। जिसके बाद दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया।
राजा दक्ष के श्राप की वजह से चंद्रमा ने अपनी शीतलता खो दी और वह क्षय रोग से ग्रसित हो गए। साथ ही उनकी सभी कलाएं भी समाप्त हो गई। चंद्र की यह स्तिथि देखकर नारद मुनि ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा। शिव ने चंद्र की आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें अपने मस्तक पर धारण करने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद से ही चन्द्रमा की सभी परेशानियां दूर हुई और वह पूर्णमासी के दिन अपने पूर्ण रूप में प्रकट हो गए।