‘रिश्तों की सौदेबाजी’ -आकाश अग्रवाल की कलम से… ✍
माता-पिता की अति महत्वकांछाओं की वजह से 30 की उम्रसीमा के करीब आ चुके लड़के-लड़कियां कुंवारे बैठे हैं। यदि अभी भी अभिभावक नहीं जागे तो परिस्तिथियां बेहद विस्फोटक हो सकती हैं। इस तरह की सोच रखने वाले समाज को अपनी रूढ़ि-वादी महत्वकांछाओं से बाहर निकलना होगा तभी स्तिथियां सुधारी जा सकती है। हैसियत से अधिक सपने देखने की वजह से समाज की छवि खराब हो रही है।
रिश्ते बनाने की बात तो केवल भ्रम है
मानव सुख, वैवाहिक सुख और अपार दौलत कुछ हद तक सभी के लिए आवश्यक है। लेकिन सिर्फ पैसा देखकर अच्छे रिश्तों को ठुकराना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं हैं। पैसे के तराजू पर बेटे-बेटियों को तौलकर सिर्फ सौदेबाजी की जा रही है, रिश्ते बनाने की बात तो केवल भ्रम है।
कुंडली मिलान की वजह से भी कई अच्छे रिश्ते ठुकरा दिए जा रहे हैं। 36 के 36 गुणों की मिलान के बाद भी समाज में कई ऐसे उदारहण ढूढ़ने से मिल जाएंगे जिनके जीवन में सुखी विवाह के बाद भी तमाम तकलीफें मौजूद हैं।
मेरा मानना है कि माता-पिता को अपने बेटे या बेटी के लिए अच्छा गुणी पार्टनर ढूढ़ने पर ध्यान देना चाहिए नाकि सिर्फ पैसे पर। यदि पार्टनर आत्मनिर्भर, समझदार और व्यभिचारों से दूर होगा तो जीवन पर्यन्त खुशियों की चाबी बन सकता है।
रिश्तों में समझौता करने की नौबत
उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरी की चाहत लिए कई युवक-युवतियां जीवन की आधी उम्र निकाल चुके हैं। यह हो रहा हैं परिवार की महत्वकांछाओं की वजह से। एक समय था जब परिवार देखकर रिश्ते हुआ करते थे। सुख-दुःख में साथ होते थे। रिश्ते लंबे चलते थे।
रिश्तों को लंबे समय तक संजोने का काम करती थी संयुक्त परिवार की नीतियां जो मौजूदा समय में लगभग खो सी गई हैं। जिसमें घर के बड़े-बुजुर्ग नई पीढ़ी में संस्कारों के बीज बोया करते थे लेकिन आज के समय में कहां हैं वो संस्कार ? आंख की शर्म तो इतिहास बन चुकी है। नौबत आ चुकी है रिश्तों में समझौता करने की..