बुर्का और हिजाब पर ‘दोगलापन’. आकाश अग्रवाल की कलम से… ✍
एक समय था जब देश में राजनीतिक सत्ताधारी स्त्रीवाद औरतों को हर तरह के पिछड़ेपन और कट्टरपन से मुक्ति दिलाने के बारे में सोच रहे थे। मौजूदा समय में कर्नाटक से होते हुए देश में बुर्का और हिजाब की बहस चली है, समाज में विभाजन दिखाई दे रहा हैं। हिजाब को औरतों की आजादी से जोड़ा जा रहा है।
‘हिजाब’ पर बहस क्यों ?
बहुत से स्त्री-पुरुष, बुद्धिजीवी, हिजाब की वकालत कर रहे हैं। बहुत-सी मुसलमान औरतें हिजाब और बुर्कों से मुक्ति के रास्ते तलाश रही हैं। कई अरसे से तो बताया गया कि हिजाब, बुर्का, घूंघट, चादर आदि स्त्रियों को पुरुषों के मुकाबले दोयम दर्जे की नागरिकता देते हैं। लेकिन फिर ‘हिजाब’ पर बहस क्यों ?
पुरुषों के बनाए ये नियम औरतों को अपने से नीचे मानने के कारण ही उसे तरह-तरह के बंधनों में कैद करते हैं। मगर अब जैसे इन विचारों को सिर के बल खड़ा कर दिया गया है। एक तरफ देश में ‘मैरिटल रेप’ पर बहस चल रही है, तो दूसरी तरफ बहुत-सी उच्च शिक्षित औरतें हिजाब का समर्थन कर रही हैं।
कॉलेज-स्कूल ड्रेस कोड रखने का हक
बहुत से पुरुष भी कह रहे हैं कि उस लड़की से पूछो कि वह क्या चाहती है। लेकिन क्या अब कोई भी कानून बनाने के लिए हर एक से पूछना पड़ेगा, तब तो कभी कोई सुधार ही नहीं हो सकेगा।
अपने को प्रगतिशील कहने वाले बहुत से लोग हिजाब के पक्ष में खड़े हैं। मेरा मानना हैं कि एक तरफ जय श्रीराम और दूसरी तरफ हिजाब के लिए समर्थन, दोनों की ही किसी कॉलेज-स्कूल में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। सभी संस्थानों को अपना ड्रेस कोड रखने का हक है।