Trijata Mandir: उत्तरप्रदेश के वाराणसी को ‘काशी नगरी’ के नाम से जाना जाता हैं। भोले बाबा की नगरी काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। भोले बाबा की नगरी काशी में सभी देवी देवता विराजमान हैं। यहां ‘बाबा विश्वनाथ’ का मंदिर हैं, जिसके दरबार के करीब है त्रिजटा नाम की राक्षसी का मंदिर। ‘त्रिजटा मंदिर’ का सीधा कनेक्शन त्रेतायुग से है। मंदिर में साल में सिर्फ एक बार राक्षसी की पूजा होती है।
त्रिजटा मंदिर में साल में सिर्फ एक दिन भक्तों की भीड़ होती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कार्तिक मास भगवान विष्णु को काफी पसंद है। इस पूरे माह में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए भक्तगण काशी में एक महीने तक गंगा स्नान करते हैं। एक महीने स्नान के पश्चात अथवा कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन त्रिजटा नाम की राक्षसी के दर्शन और पूजन के बाद ही भक्तों की तपस्या संपन्न होती है।
माता सीता ने दिया था वरदान
पौराणिक कथाओं के मुताबिक ‘माता सीता ने त्रिजटा राक्षसी को वरदान दिया था कि कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन उन्हें देवी स्वरूप में पूजा जाएगा। दरअसल, त्रेतायुग में लंकापति रावण ने माता सीता का हरण किया था। उसने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा। यहां माता सीता की देखभाल त्रिजटा नाम की राक्षसी किया करती थी। वह एक मां की तरह सीता को अपनी पुत्री मान ख्याल रखती थी। रावण वध के बाद जब माता सीता वापस लौट रही थी तो उन्होंने त्रिजटा को काशी में विराजमान होने की बात कही और कहा कि वह प्रतिवर्ष एक दिन की देवी के रूप में पूजी जायेगी। उसी समय से लेकर आज तक त्रिजटा को देवी स्वरूप मानकर पूजा होती रही हैं।
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भोग में चढ़ता है मूली और बैंगन
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जो भी कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन त्रिजटा राक्षसी के मंदिर जाकर उसकी पूजा करता है, वह उसकी हमेशा रक्षा करती हैं। यही वजह है कि यहां साल में एक दिन भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। भक्त मूली-बैंगन का भोग लगाकर विशेष रूप से Trijata Mandir आकर राक्षसी त्रिजटा की पूजा करते हैं।