Netaji Subhas Chandra Bose: भारत के स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सन 1897 में उनका जन्म एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। भारत की आजादी के लिए वह अंग्रेजों से लड़े थे। उनका डर ब्रिटिश शासकों में इस कदर व्याप्त था कि वे कभी नेताजी को पकड़ने की हिमाकत न कर सके। नेताजी सुभाष के बहादुरी का सबूत हैं कि आज भी उनकी मौत रहस्य बनी हुई हैं।
सरकारी कागजों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन 18 अगस्त 1945 का बताया जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक Netaji Subhas Chandra Bose का निधन ताइवान में एक विमान हादसे में हुआ। बताया जाता है कि नेताजी विमान में बैठ कर मंचुरिया की तरफ जा रहे थे। इस दौरान विमान लापता हो गया और उसका अंत तक कुछ पता नहीं चला। इसके बाद मान लिया गया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उस हादसे में देश ने हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया।
जापान के मंदिर में हैं नेताजी की अस्थियां!
वो दिन था और आज का दिन हैं, Netaji Subash Chandra Bose को ना तो किसी ने जीवित देखा और ना मृत। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा के नारे के साथ’ हर भारतवासी के अंदर देशभक्ति का जोश भरने वाले क्रांतिकारी ‘सुभाष चंद्र बोस’ की मौत को लोग आज भी रहस्य मानते है, चाहे सरकारी कागज़ कुछ भी बोले। इसके उलट बताया जाता है कि नेताजी की अस्थियां जापान के रेंकोजी मंदिर (Renkoji Temple) में सुरक्षित रखी गई हैं।
नेताजी का जापान से बड़ा गहरा नाता रहा है। जापान के रेकोंजी मंदिर में आज भी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि दी जाती है। यह जापान की राजधानी टोक्यो के सुगिनामी वार्ड में स्थित एक बौद्ध मंदिर है। टोक्यो मेट्रो को हिगाशी-कोएनजी स्टेशन ले जाकर इस मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता हैं।
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जवाहरलाल नेहरू पहुंचे थे इस मंदिर
जापान के Renkoji Temple की स्थापना 1594 को की गई थी। यह बौद्ध धर्म के निकिरेन संप्रदाय से जुड़ा हुआ है, जो मानते है कि मानव की मुक्ति एक कमल के फूल में निहित है। निकिरेन संप्रदाय से संबंधित अद्वितीय मंदिरों में से एक होने के साथ-साथ यह मंदिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों का विशेष स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि नेताजी की अस्थियों को यहां 8 सितंबर, 1945 से संरक्षित करके रखा हुआ है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (First Prime Minister Jawaharlal Nehru) अक्टूबर 1957 में मंदिर का दौरा करने वाले पहले भारतीय व्यक्ति बने थे।