रियो ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडलिस्ट साक्षी मलिक को हराने के बाद सोनम मलिक अब ओलंपिक क्वॉलिफायर्स में दांव आजमाने वाली थी। लेकिन कोरोना लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर के तमाम स्पोर्ट्स इवेंट स्थगित हो चुके है। ऐसे में ओलंपिक की तारीख भी आगे बढ़ा दी गई है। महज 18 साल की उम्र में सोनम मलिक ने साक्षी को हराकर जो जज्बा पेश किया है, वह वाकई में काबिलेतारीफ है। इसी जीत ने सोनम मलिक को भी रातों-रात स्टार बना दिया।
सोनम के करियर की कुछ खास उपलब्धियां
2019 में बुल्गारिया और 2017 में एथेंस में हुई विश्व कैडेट चैंपियनशिप में स्वर्ण।
2016 में थाईलैंड में हुई एशियन चैंपियनशिप में कांस्य।
2017 क्रोएशिया में हुई एशियन चैंपियनशिप में रजत।
2017 विश्व स्कूल गेम्स में गोल्ड मेडल।
2018 अर्जेंटीना में हुई विश्व कैडेट चैंपियनशिप में कांस्य।
2019 कजाखस्तान में हुई एशियन चैंपियनशिप में रजत।
संघर्ष की दर्दनाक दास्तान और जज्बे की कहानी
घटना साल 2013 की है जब राज्य स्तर के एक मुकाबले के दौरान सोनम के दाएं हाथ ने काम करना बंद कर दिया था। उनके पिता राजेंद्र और कोच अजेमर केसरी ने इसे हल्की-फुल्की चोट समझकर इसे इग्नोर किया और सिर्फ देसी इलाज किया। लेकिन धीरे-धीरे सोनम का हाथ बिल्कुल निष्क्रिय हो गया। जिसके बाद हरियाणा के रोहतक में सोनम के हाथ को विशेषज्ञ को दिखाया गया। जिसने सोनम से कुश्ती को भूल जाने को कहा।
आस-पड़ोस के लोगों ने कसी फब्तियां
सोनम के पिता राजेंद्र को अपनी बेटी को कुश्ती खिलाने के अपने फैसले पर काफी पछतावा हुआ। यह वो समय था जब आस-पड़ोस के लोगों ने ताने कसने शुरू कर दिए कि ‘अब उसे कौन अपनाएगा। राजेंद्र बताते है कि करीब 10 महीने के इलाज के दौरान सोनम ने कुश्ती के अखाड़े को नहीं छोड़ा। इस दौरान वह हाथों से नहीं बल्कि पैरों से अभ्यास करने लगी क्योंकि कुश्ती में पैरों का भी अहम रोल होता है। वह किसी भी मूल्य पर कुश्ती नहीं छोड़ना चाहती थी।
10 महीने इलाज के बाद फिट हुई सोनम
दस महीने चले इलाज में डॉक्टर ने सोनम को दोबारा फिट घोषित कर दिया। जिसके बाद फिर सोनम मलिक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सोनम का कुश्ती के प्रति प्रेम और जज्बा ही है जिसकी वजह से आज वह पहलवानी के खेल में देश की नई सनसनी बनकर सामने आई है। सोनम अपने कोच अजमेर केसरी की उस बात को हमेशा अपने जीवन में उतार कर रखती है जिसमें वह कहते है कि ‘चोट पहलवानी का श्रंगार है और उससे घबराना नहीं चाहिए।’