अभिनेता ऋषि कपूर अब हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन ऋषि कपूर की फिल्में उन्हें हमारे दिलों में हमेशा जीवित रखेंगी। उन्होंने अपने करियर में कई सारी फिल्मों में अभिनय किया। वह हिंदी सिनेमा का दिग्गज अभिनेताओं में शुमार किये जाते थे। चुनौतीभरे किरदार करने के लिए ऋषि कपूर निर्माताओं की पहली पसंद माने जाते थे। उन्होने कई तरह के किरदार निभाए। जिसमें सीरियस से लेकर कॉमेडी भरे किरदार भी शमिल रहे। उनका निधन हिंदी सिनेमा के लिए गहरा सदमा है।
एक नजर उनकी फिल्मों के बेस्ट डायलॉग पर
- हर इश्क का एक वक्त होता है, वो हमारा वक्त नहीं था, पर इसका ये मतलब नहीं कि वो इश्क नहीं था – जब तक है जान (2012)
- हम आज जो फैसला करते है, वही हमारे कल का फैसला करेगा’ -फना (2006)
- बेखबर सोए हैं वो लूट के नींदें मेरी, जज्बा-ए-दिल पे तरस खाने को जी चाहता है। कबसे खामोश हुए जो जाने जहां कुछ बोलो..क्या अभी और सितम ढाने को जी चाहता है। -लैला मजनू (1979)
- दुनिया के सितम याद, ना अपनी ही वफा याद….अब कुछ भी नहीं मुझको मोहब्बत के सिवा याद… – लैला मजनू (1979)
- जी करता है…तुम्हारी हर ख्वाहिश, हर इच्छा को अपना मकसद बनाना। -दामिनी (1993)
- सभी इंसान एक जैसे ही तो होते हैं। वही दो हाथ, दो पैर, आंखें, कान, चेहरा…सबके एक जैसे ही तो होते हैं…फिर क्यों कोई एक, सिर्फ एक ऐसा होता है जो इतना प्यारा लगने लगता है कि अगर उसके लिए जान भी देनी पड़े तो हंसते हुए दी भी जा सकती है। -प्रेम रोग (1982)
- मोहब्बत रीति रिवाज नहीं मानती..और ना ही वो लफ्जों की मोहताज है..- दीवाना (1992)
- ये मुल्क तो मेरी मां है…और मुंबई शहर मेरी माशूका -डी डे (2013)
- जाने से पहले, एक आखिरी बार मिलना क्यों जरूरी होता है? -लव आजकल (2009)
- बेहिसाब पॉवर ये बेशुमार पैसा..इन दोनों में से मुझे एक तो चाहिए -औरंगजेब (2013)
- ‘शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर गालिब…या वो जगह दिखा दे जहां खुदा ना हो.. -फना (2006)
- संगमरमर से तराशा हुआ ये शोख बदन। इतना दिलकश है कि जी चाहता है..सुर्ख होठों में तरखती है वो रंगीन शराब, जिसको पी पीके बहक जाने को जी चाहता है। नरम सीने में धड़कते हैं वो नाजुक तूफान, जिनकी लहरों में उतर जाने को जी चाहता है। तुमसे क्या रिश्ता है कब से है ये मालूम नहीं, लेकिन इस हुस्न पर मर जाने को जी चाहता है। हमसे बेहतर है ये पाजेब जो इस पैर में है, इसी पाजेब में ढल जाने को जी चाहता है। रखले कल के ले ये दूसरी पाजेब-ए-दिल, कल इसी में फिर आने को जी चाहता है। -लैला मजनू (1979)