पूनम यादव भारतीय खेल जगत का चमकता हुआ सितारा है। जिसने साल 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में वेटलिफ्टिंग के खेल में स्वर्ण पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया। 9 जुलाई 1994 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जन्मी पूनम दांदपुर जिले की रहने वाली है। उनके पिता पेशे से किसान है और मां गृहिणी। पांच भाई-बहनों में पूनम चौथे नंबर की है। परिवार की आर्थिक तंगी में पूनम का बचपन मां-बाप के साथ खेतों पर काम करने और जानवरों को चारा खिलाने में निकला।
घर में खुशी सेलिब्रेट करने के लिए नहीं थे पैसे
बचपन में कई दिनों तक भूखे पेट सोने वाली पूनम की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उनके जीवन में एक समय ऐसा आया जब पिता ने भैंसे बेचकर बेटी को 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने के लिए भेजा। पूनम ने पिता के विश्वास को अपनी ताकत बनाया और इन राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीतकर देश का बढ़ाया। इसके बावजूद उनके परिवार में गरीबी की आलम ऐसा था कि वह कांस्य जीतने की खुशी में मिठाई बांटने में भी असमर्थ थे।
2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को दिलाया स्वर्ण
समय निकला और पूनम ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। यह उपलब्धि पूनम और उनके परिवार के लिए काफी बड़ी थी। आखिर हो भी क्यों ना, पूनम ने गोल्ड जीतकर मां बाप के उस सपने को भी पूरा किया जो कभी उन्हें असंभव लग रहा था। पूनम की इस सफलता की डगर इतनी आसान नहीं थी, उन्होंने इसके लिए जीवन में काफी संघर्ष किया। लेकिन समय रहते पूनम ने अपने हुनर को पहचाना और उस दिशा में कदम आगे बढ़ाये।
रेलवे में टीटीई की नौकरी कर रही है पूनम यादव
घर वालों की हिम्मत और अपने हुनर पर भरोसा रखते हुए पूनम में देश-दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाया है। वेटलिफ्टिंग के साथ-साथ पूनम मौजूदा समय में रेलवे में टीटीई की नौकरी कर रही है। उनकी संघर्ष की दास्तान को सुनकर तो यही कहा जा सकता है कि ‘यदि मन में कुछ करने की ठान ली जाये तो कुछ भी करना असंभव नहीं है।’ 24 वर्षीय पूनम यादव अपनी इस सफलता की वजह से देशभर की बेटियों के लिए प्रेरणास्त्रोत का काम कर रही है।
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