रियो ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडलिस्ट साक्षी मलिक को हराने के बाद सोनम मलिक अब ओलंपिक क्वॉलिफायर्स में दांव आजमाने वाली थी। लेकिन कोरोना लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर के तमाम स्पोर्ट्स इवेंट स्थगित हो चुके है। ऐसे में ओलंपिक की तारीख भी आगे बढ़ा दी गई है। महज 18 साल की उम्र में सोनम मलिक ने साक्षी को हराकर जो जज्बा पेश किया है, वह वाकई में काबिलेतारीफ है। इसी जीत ने सोनम मलिक को भी रातों-रात स्टार बना दिया।
पिता राजेंद्र नहीं चाहते थे बेटी बने पहलवान
सोनम को कुश्ती विरासत में मिली। उनके पिता राजेंदर मलिक पेशेवर पहलवान थे लेकिन वह राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का अपना सपना कभी पूरा नहीं कर सके थे। सोनीपत के मदीना गांव के रहने वाले राजेंदर मलिक को उनके गांव में लोग ‘राज पहलवान’ के नाम से जानते है। कुश्ती से प्रेम करने वाले राजेंद्र कुछ साल पहले तक अपनी बेटी सोनम को पहलवान नहीं बनाना चाहते थे। वह अपनी बेटी के लिए एक ऐसे खेल की तलाश में थे जिसमें वह उसे आगे बढ़ा सके।
सोनम मलिक को मिला फौजी अंकल का साथ
राजेंद्र बताते है कि वह नेशनल गेम्स से पहले चोटिल हो गए और उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। यही वजह थी कि देश के लिए खेलने का उनके मन में मलाल रह गया। नामचीन पहलवान मास्टर चन्दगी राम के दिल्ली वाले अखाड़े में ट्रेनिंग कर चुके राजेंद्र अपनी बेटी के साथ ऐसा होता नहीं देखना चाहते थे। लेकिन जब सोनम करीब 12 साल की हुई, तब उनके फौजी अंकल और पापा के बचपन के दोस्त अजमेर केसरी ने उन्हें पहलवान बनाने का जिम्मा उठाया।
लड़कों के साथ ट्रेनिंग कर मजबूत हुई सोनम
साल 2011 में अजमेर केसरी ने अपने खेत में अखाड़ा खोला और पहलवानी का प्रशिक्षण देना शुरू किया। धीरे-धीरे पिता राजेंद्र के साथ सोनम भी सुबह-सुबह अखाड़े में आने लगी और पहलवानी का अभ्यास करने लगी। समय बदला और राजेंद्र मलिक जो कभी अपनी बेटी को पहलवान ना बनाने की मन में ठान चुके थे, उनका मन पिघल गया और वह बेटी का भविष्य कुश्ती में देखने लगे। अखाड़े में लड़कों से साथ सोनम को हार्ड ट्रेनिंग करने का अवसर मिला।
बिना दवाब में खेलना सोनम की खासियत
सोनम बताती है कि कोच अजमेर केसरी ने उनकी कुश्ती की ट्रेनिंग बिल्कुल फौजियों की तरह करवाई है। उन्हें हर वक्त लड़कों की तरह प्रशिक्षण दिया गया। कोच कहते है कि मैट पर जाने के बाद किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जायेगी।’ सेना से बतौर सूबेदार रिटायर हुए अजमेर केसरी बताते है कि ‘सोनम ने काफी कम उम्र में अपने से ज्यादा बड़े और अनुभवी नामचीन पहलवानों को हराया है। बिना दवाब में सामना करना उसकी खासियत बन चुकी है।’