भारत की महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) ने Commonwealth Games 2022 में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया है। बर्मिंघम में चल रहे राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीत मीराबाई चानू ने इतिहास रच दिया है। साथ ही कई रिकॉर्ड भी स्थापित कर दिए है। यह लगातार दूसरी बार हैं जब मीराबाई ने राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड जीता है। मीराबाई पिछली बार गोल्ड कोस्ट में स्वर्ण जीती थीं। वहीं, 2020 टोक्यों ओलंपिक में उन्होंने देश को रजत पदक दिलाया था।
तीरंदाज बनने का देखा था सपना
मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में पैदा हुईं मीराबाई चानू बचपन में तीरंदाज बनना चाहती थीं, लेकिन वेटलिफ्टिंग नसीब था। इसके पीछे की कहानी भी काफी रोचक है। 8 अगस्त 1994 को मीराबाई का जन्म हुआ था। बचपन संघर्षों में बीता। एक समय वह पहाड़ से जलावन के लिए लकड़ियां चुनकर लाया करती थीं। बचपन से भारी सामान उठाने वाली मीराबाई ने उस समय सोचा भी नहीं होगा कि वह आगे चलकर वजन उठाकर ही देश को पदक दिलाएंगी।
एक किताब ने बदल दी जिंदगी
बचपन में तीरंदाज बनने का सपना देखते-देखते मीरा कब वेटलिफ्टर बन गई, पता ही नहीं चला। इंटरनेट पर मौजूद साक्ष्यों के आधार पर मीराबाई सातवीं कक्षा तक तीरंदाज बनने की ही सोचा करती थी। लेकिन आठवीं कक्षा में आते ही उन्हें किताब में भारत की मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी के बारे में पढ़ने का अवसर मिला। आपकी जानकारी के लिए बता दे कुंजरानी विश्व चैंपियनशिप में सात रजत और एशियाई खेलों में दो कांस्य पदक जीती थीं।
ट्रक डाइवर्स का खास योगदान
भारत की मौजूदा समय की सबसे सफल महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू की जिंदगी में ट्रक डाइवर्स का काफी योगदान है। उनके पास अपने गांव से 25 किमी दूर इंफाल में स्थित खेल अकादमी तक जाने के पैसे नहीं हुआ करते थे। ऐसे समय में प्रतिदिन नदी की रेत को इंफाल तक ले जाने वाले ट्रक डाइवर्स की मदद से वह अभ्यास के लिए जा पाती थी। हाल ही में मीराबाई ने 150 ट्रक ड्राइवर्स और उनके सहायकों को सम्मान के तौर पर एक शर्ट और एक मणिपुरी दुपट्टा भेंट किया था। मीराबाई चानू ने उस समय कहा था कि अगर ये ड्राइवर्स नहीं होते तो उनका वेटलिफ्टर बनने का सपना अधूरा रह जाता।
गांव की मिट्टी और चावल से प्यार
देश की मिट्टी और चावल से लगाव रखने वाली मीराबाई हर विदेशी दौरे पर मिट्टी और चावल अपने साथ लेकर जाती हैं। बाहर भी गांव का ही चावल खाती हैं।