15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ था। आजादी का यह दिवस देश के हर नागरिक में जोश का संचार भर देने वाला हैं। इस वर्ष (Independence Day 2021) में हम अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस सेलिब्रेट कर रहे हैं। इस अवसर पर कलमकुंज की टीम आपके लिए उस भारतीय महिला के बारे में परिचित करवा रही है, जिसने आजादी से 40 साल पहले ही विदेश में भारत का झंडा फहराकर अंग्रेजों को आंख दिखाई थी। जोकि एक गर्व करने वाला क्षण रहा होगा।
भारत की स्वतंत्रता का माहौल बनाया
हम बात कर रहे है भारतीय मूल की पारसी नागरिक ‘भीकाजी कामा’ की। जिन्होंने लंदन से लेकर जर्मनी और अमेरिका तक का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाया था। उन्होंने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टुटगार्ट नगर में सातवीं अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में भारत का झंडा फहराया था। हालांकि, उस समय तिरंगा झंडा वैसा नहीं था जैसा कि आज है। भीकाजी कामा ने झंडे में हरा, पीला और लाल रंग का इस्तेमाल किया था। यह झंडा रंगों के जरिये क्रमशः इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करता था। साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम’ लिखा हुआ था।
भीकाजी कामा ने जिस झंडे को जर्मनी में लहराया था, उसमें देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने का प्रयास किया गया था। कामा का पेरिस से प्रकाशित होने वाला ‘वन्देमातरम्’ पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी पसंद किया गया था।
भीकाजी कामा ने अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में दिए अपने भाषण में कहा था, ‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है। उन्होंने सभा में मौजूद लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की थी और भारतवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, आगे बढ़ो, हम हिंदुस्तानी हैं और हिंदुस्तान हिंदुस्तानी का है।’
प्लेग की बीमारी में खूब की समाज सेवा
24 सितंबर 1861 को बंबई (मुंबई) में जन्मी भीकाजी कामा के अंदर लोगों की मदद और सेवा करने की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने सन 1896 में मुंबई में प्लेग की बीमारी फैलने के दौरान मरीजों की काफी सेवा की थी। लेकिन दुर्भाग्यवश वह खुद सेवाकार्य करते-करते इस बीमारी की चपेट में आ गई। हालांकि, वह इससे ठीक होने में कामयाब रही। इसके बाद 74 साल की उम्र में उन्होंने 13 अगस्त 1936 को यानी आजादी से कई साल पहले अंतिम सांस ली।
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