कैलाश पर्वत (Kailash Parvat) पर आज तक कोई भी इंसान चढ़ाई नहीं कर पाया है। इंसान ने माउंट एवरेस्ट से लेकर कई अरवली पर्वतमालाओं पर चढ़कर विजय पताका फहराई हैं। लेकिन कैलाश पर्वत पर उसे हर बार निराशा ही हाथ लगी हैं। कई देशों के पर्वतारोहियों ने इस पर्वत पर चढ़ने के अथक प्रयास किये लेकिन या तो वह वापस नहीं लौटे या फिर बेहद बुरी स्तिथि में जान बचाकर थोड़ी दूरी से ही वापस लौट आये। कैसा और क्या रहा हैं कैलाश पर्वत का इतिहास? जानते है-
हिंदू मान्यताओं के अनुसार कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है। मान्यता है कि शिव परिवार यही वास करता है। पौराणिक काल में विभिन्न आसुरी शक्तियों ने कैलाश पर्वत को हथियाने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहे। यह बात आज के समय में भी सच साबित होती हैं। यह पर्वत आज भी एक रहस्य बना हुआ है। दुनिया की 8848 मीटर सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग फतह कर चुके हैं, लेकिन इससे लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर ऊंची कैलाश पर्वत पर अभी तक कोई नहीं चढ़ सका है। इसके पीछे भी कई कहानियां और रहस्य खूब प्रचलित है।
कैलाश पर्वत के आगे चीन और रुस भी नतमस्तक
चीन सरकार के आदेश पर कुछ पर्वतारोहियों का दल कैलाश पर्वत पर चढ़ने का प्रयास कर चुका हैं। लेकिन वह अपने प्रयास में असफल रहा। जिसके बाद पूरी दुनिया में चीनी सरकार को विरोध का सामना भी करना पड़ा। इसके बाद से ही चीनी सरकार ने कैलाश पर्वत की चढ़ाई पर रोक लगा दी थी।
साल 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने का असफल प्रयास किया। सर्गे सिस्टिकोव ने बताया कि पर्वतमाला पर कुछ दूरी चढ़ने के बाद ही उनके और उनकी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा था। पैरों ने जवाब दे दिया था। खुद उनके जबड़े की मांसपेशियां खिंचने लगीं, और जीभ जम गई। मुंह से आवाज़ निकलना बंद हो गई। ऐसी स्तिथि में वह वापस उतरने लगे तब जाकर उन्हें आराम महसूस हुआ।
दुर्गम चढ़ाई और चेहरे पर दिखने लगता है बुढ़ापा
कहते है जो भी कैलाश पर्वत पर चढ़ने का प्रयास करता हैं, वो आगे नहीं चढ़ पाता हैं। यहां की हवा में ही कुछ अलग अहसास हैं जिससे व्यक्ति का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है। यही नहीं कहते है कि कैलाश पर चढ़ाई के दौरान आपके बाल और नाखून 2 हफ्ते के बराबर 2 दिन में ही बढ़ जाते है। साथ ही शरीर भी मुरझाने लगता है और चेहरे पर बुढ़ापा झलकने लगता हैं। चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है।
चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुंचने का कोई रास्ता ही नहीं है। मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े-से-बड़ा पर्वतारोही भी घुटने टेक देता है। लाखों लोग कैलाश पर्वत पर आकर इसके चारों ओर परिक्रमा लगाते हैं। रास्ते में मानसरोवर झील के दर्शन भी हैं, लेकिन पर्वत की चढ़ाई मुश्किल।
कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर शिवजी निवास करते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता। मरने के बाद या वह जिसने कभी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश फतह कर सकता है।
वर्ष 1999 में किया जा चुका है शोध
रूस के वैज्ञानिकों की टीम ने सन 1999 में एक महीने तक कैलाश पर्वत के नीचे रहकर समय निकाला। इस दौरान उन्होंने पर्वतमाला के आकर को लेकर शोध किया। जिसके बाद निष्कर्ष निकाला कि कैलाश पर्वत की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढकी रहती है।
भारत और तिब्बत समेत दुनियाभर के लोग कैलाश पर्वत को पवित्र स्थान मानते हैं। कहते है कि 11वीं सदी में एक बौद्ध भिक्षु योगी मिलारेपा ने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई की थी। वह ऐसा करने वाले इकलौते इंसान हैं। मौजूदा समय में कैलाश पर्वत की चढ़ाई पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है।