Asian Games 2023: Harish Kumar- खेल चाहे जो भी हो, हर एक खिलाड़ी का सपना होता है कि वो इंटरनेशनल लेवल पर अपने देश का सम्मान बढ़ा सके। लेकिन भारत जैसे बड़े देश में खिलाड़ियों के साथ भेदभाव हो रहा है। यहां क्रिकेट, रेसलिंग और कबड्डी जैसे कुछ और खेलों को छोड़ दे तो अन्य कई ऐसे खेल है, जिनमे खिलाड़ियों को उचित सम्मान नहीं दिया जा रहा है। यही नहीं इनमें कई खिलाड़ी ऐसे है जिन्होंने देश के लिए मेडल भी जीते, लेकिन आज भी पहचान पाने के लिए वह दर-दर भटक रहे है। इसी कड़ी में हम एक ऐसे खेल से जुड़े खिलाड़ी के बारे में बात करेंगे, जिस खेल का नाम भी आप शायद आज पहली बार सुनोंगे और जानोगे।
सेपक टकरा खेल में देश को दिलाया कांस्य
साल 2018 में एशियाई खेलों का आयोजन जकार्ता में हुआ। इन खेलों में भारतीय दल ने 15 गोल्ड, 24 सिल्वर और 30 ब्रॉन्ज मेडल जीतकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। जिसके बाद नामी खेलों में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों पर सरकार ने पैसों की बौछार भी की और सम्मान भी मिला। लेकिन दूसरी तरफ एक ऐसा भी खिलाड़ी था, जिसका मेडल जीतने और वापस वतन आने पर स्वागत तो हुआ। लेकिन सरकार की तरफ से उस पर कोई मेहरबानी नहीं हुई। हम बात कर रहे है हरीश कुमार की, जिन्होंने ‘सेपक टकरा’ खेल में देश को कांस्य पदक दिलाया था। मेडल विजेता हरीश सरकार की अनदेखी का शिकार हो रहे है।
पिता संग चाय की दुकान चलाने को मजबूर
इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक हरीश कुमार (Harish Kumar) आज भी उसी हालत में है, जैसे कि वो एशियन गेम्स में जाने से पहले थे। दरअसल हरीश का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है। उनके पिता चाय की दुकान चलाते है और वही परिवार पालने का एकमात्र जरिया है। हरीश बताते है कि, उनकी दो बहनें है और दोनों ही नेत्रहीन है। जिसकी वजह से उन्हें पिता के साथ चाय की दुकान पर बैठना पड़ता है। इसलिए उन्हें परिवार चलाने के लिए पिता का सहारा बनना पड़ता है। हरीश बताते है कि सरकार की तरफ से उन्हें किसी प्रकार का भरोसा नहीं मिला है, जिसके कारण वह किसी भी तरह की उम्मीद पर जी सके।
बड़े भाई और कोच हेमराज का मिला सपोर्ट
हरीश कुमार (Harish Kumar) की मजबूरी देखकर साफ है कि, देश में क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ियों को उचित सम्मान नहीं दिया जाता। यह हरीश का नहीं बल्कि देश का ही दुर्भाग्य है। हरीश की उपलब्धि और उनके जीते कांस्य पदक को नकारा इसलिए भी नहीं जा सकता क्योंकि एशियन गेम्स में ‘सेपक टकरा’ जैसे खेल में यह देश का पहला पदक भी है। फिलहाल हरीश अपने पिता के साथ दिल्ली के मजनू का टीला में स्तिथि दुकान पर चाय बेचते है। हरीश के जीवन में उनके कोच हेमराज और बड़े भाई नवीन बड़े मददगार रहे है। लेकिन पिता का कहना है कि, वह दुकान पर काम करेगा तो कमाई बढ़ेगी और परिवार चलेगा।
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जानिये क्या होता है सेपक टकरा का खेल
आपकी जानकारी के लिए बता दे ‘सेपक टकरा’ मलय और थाई भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसमें सेपक का अर्थ ‘किक लगाना’ और टकरा का अर्थ ‘हल्की गेंद’ है। इस खेल में वॉलीबॉल की तरह ही नेट के दूसरी पार गेंद को भेजना होता है। लेकिन यहां हमें हाथ नहीं बल्कि पैर, घुटने, सीने और सर का ही प्रयोग करना होता है।
हरीश का इस खेल के प्रति प्रेम बचपन में उस वक्त जाग्रत हुआ, जब उनके कोच हेमराज ने उन्हें टायर को कैंची से काटकर उसकी गेंद बनाकर खेलते हुए देखा था। जिसके बाद हेमराज ने उन्हें सेपक टकरा खेलने की सलाह दी और आज परिणाम सबके सामने है।
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